
यह पृथ्वी हमारे सौरमंडल का सबसे ज्यादा जीवंत और सुंदर ग्रह है। यह खूबसूरत है क्योंकि पृथ्वी में न जाने कितने प्रकार की वनस्पतियां, पेड़-पौधे, जीव-जंतु और पक्षी हैं। यह पृथ्वी इन सब का घर है, इसमें मानव भी शामिल है। लेकिन इस जीवंत और हरे-भरे ग्रह को मानव ने इतने गहरे जख्म दिये हैं कि प्रकृति का पूरा संतुलन ही डांवाडोल हो गया है। हमने अपनी महत्वाकांक्षा और निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु बड़ी बेरहमी के साथ धरती की हरियाली को उजाड़ा है। जिससे न जाने कितने जीव जंतु बेघर होकर विलुप्त हो चुके हैं। हमारी नासमझी पूर्ण बर्ताव का खामियाजा अब हमें ही भोगना पड़ रहा है।
अब यह निहायत जरूरी हो गया है कि हम समझदारी दिखायें और प्रकृति व पर्यावरण से खिलवाड़ बंद करें। यह पृथ्वी जितनी हमारी है उतनी ही पेड़-पौधों, वनस्पतियों, जीव-जंतु और पक्षियों की भी है। हमें सह- अस्तित्व की अहमियत को समझना होगा, क्योंकि गहरे में सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। किसी की भी कमी पूरे प्राकृतिक चक्र व संतुलन को प्रभावित करती है। अभी तक हम जिस सोच और समझ के साथ जिए हैं वह रास्ता विनाश की ओर जाता प्रतीत होता है। लेकिन हम विनाश की आ रही आहट को अनसुना कर रहे हैं और अपने को श्रेष्ठ साबित करने तर्क भी गढ़ लेते हैं। मनुष्य द्वारा बनाई गई कोई चीज जब नष्ट की जाती है तो उसे बर्बरता कहा जाता है, लेकिन हम प्रकृति द्वारा सृजित किसी चीज को जब नष्ट करते हैं तो हम इसे प्रगति और विकास कहते हैं। इस तरह के दोहरे मापदंड प्रकृति, पर्यावरण व समूची पृथ्वी के अस्तित्व के लिए घातक है। इसलिए समझदारी इसी में है कि हम पृथ्वी का सम्मान करते हुए सह-अस्तित्व की भावना को मजबूती प्रदान करें तथा प्रकृति और पर्यावरण के साथ अत्याचार पर रोक लगाते हुए प्रकृति का श्रंगार करें।
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