
जब हम अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु जंगल काटते हैं और बड़े पैमाने पर खनिज संपदा का दोहन कर पर्यावरण को तहस-नहस करते हैं, तो इसे नाम देते हैं विकास। इस कथित विकास से जब वन्य प्राणियों का जीवन संकट में पड़ता है और वह अपने को बचाने के लिए हमलावर होते हैं, तो इसे क्रूरता कहकर उन्हें ही खत्म कर दिया जाता है। बिना यह जाने और समझे कि जंगल और वन्यजीवों का वजूद हमारे खुद के अस्तित्व को कायम रखने के लिए बेहद जरूरी है।
फिल्म शेरनी में इन्हीं सब मुद्दों को बड़े ही प्रभावी ढंग से उठाया गया है। आज ही मैंने यह फिल्म देखी, जो रुचिकर लगी। आपने यदि नहीं देखी तो जरूर देखें। यह फिल्म विकास व पर्यावरण से जुड़े मुद्दों की अहमियत पर जहां ध्यान आकृष्ट करती है, वहीं सियासत के पाखंड व रीढ़ विहीन, लचर और सुविधा भोगी अफसरशाही की असलियत को भी उजागर करती है। नेता आम जनता को भ्रमित कर किस तरह से जंगल व वन्य जीवों के प्रति उनमें वैर भाव पैदा करते हैं, इसको बड़े ही प्रभावी ढंग से फिल्म में प्रस्तुतीकरण हुआ है।
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