
डेढ़ दशक पूर्व तक जंगलों के आसपास डेरा डालकर शिकार करना जिनकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा था, वे शातिर शिकारी कभी जंगल और वन्य प्राणियों का संरक्षण करेंगे इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन यह अविश्वसनीय सी लगने वाली बात मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में साकार हो रही है। शिकार के लिए मध्य प्रदेश सहित महाराष्ट्र और राजस्थान के जंगलों में घूमने वाले इन पारधियों का पहले कोई स्थाई ठिकाना नहीं था, लेकिन वन महकमे की पहल से अब उन्हें बसाकर समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया जा रहा है।
पन्ना शहर से 7 किलोमीटर दूर गांधीग्राम में पारधियों की बस्ती है, जहां 60-70 परिवार निवास करते हैं। पारधियों के इस कुनबे में सबसे बुजुर्ग 70 वर्षीय तूफान सिंह हैं। चर्चा के दौरान तूफान सिंह ने बताया कि "मुगलों के जमाने से हम जंगल में जाकर शिकार करते रहे हैं। हमारे बाप दादा भी यही काम करते थे। जंगल में घूम-घूम कर शिकार करना हमारी जिंदगी थी। हमारे पुरखों ने कितने जानवरों का शिकार किया, इसका कोई हिसाब नहीं है।"