साधारण सा दिखने वाला असाधारण इंसान
कोई साधारण सा दिखने वाला इंसान इतना असाधारण भी हो सकता है, इसकी अनुभूति पद्म श्री बाबूलाल दहिया को देखकर होती है। प्रकृति, पर्यावरण, जैव विविधता और परंपरागत अनाजों की बिसरा दी गई किस्मों को सहेजने और संरक्षित करने वाले दहिया जी अनुभव जनित ज्ञान के अपूर्व भंडार हैं। जैविक खेती की महत्ता बताने वाले दहिया जी ने देसी धान की सवा सौ से भी अधिक किस्मों को संजोया है और जीर्ण - शीर्ण हो चुकी काया के बावजूद भी उसी जुनून और जज्बे के साथ अपने मिशन में जुटे हुए हैं। विंध्य क्षेत्र का यह साधारण सा दिखने वाला कृषक बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी है। सृजनात्मकता इनकी सहज और स्वाभाविक जिंदगी बन चुकी है तभी तो आप न सिर्फ परंपरागत जैविक खेती के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे हैं अपितु कृषि ज्ञान विज्ञान और साहित्य को भी समृद्ध कर रहे हैं। इनके लंबे अनुभव जनित ज्ञान का ही यह कमाल है कि देश के ख्याति लब्ध कृषि वैज्ञानिक भी इनके सामने निरुत्तर और आवाक हो जाते हैं। विंध्य ही नहीं समूचे प्रदेश के गौरव बन चुके बाबूलाल दाहिया जी ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के 91वें स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में अपनी बात को किस तरह प्रभावी ढंग से रखी, आप भी पढ़ें पद्म श्री बाबूलाल दहिया जी की जुबानी -
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